इतिहास का एक ओर रिअल बाहूबली योद्धा 🚩
विर तोगोजी राठौर -सिर
कटा और धड़ लड़ा उस वीर का🚩बात सन 1656
के
आस-पास की है, उस
वक़्त दिल्ली में राज था शाहजहा का और मारवाड़ की गद्दी पर बैठे थे महाराजा गज सिंह
प्रथम, एक
दिन दिल्ली में दरबार लगा हुआ था, सभी उमराव बैठे हुए थे, तभी शाहजहा के मन में
विचार आया की मेरे दरबार में खानों की बैठक 60 और राजपूतो की बैठक 62 क्यों , दो बैठक राजपूतो की
ज्यादा क्यों है,
उन्होंने दरबारियों से
कहा कि इसका जवाब तत्काल चाहिए | सभा में सन्नाटा पसर
गया | सभी
एक दूसरे को ताकने लगे। सबने अपना जवाब दिया, लेकिन बादशाह संतुष्ट
नहीं हुआ । आखिरकार दक्षिण के सूबेदार मीरखानजहा खड़ा हुआ
“हजूर, राजपूतो उमराव की संख्या हम से दो ज्यादा इसलिए है क्योकि उनके दो ऐसे काम है जो हम नहीं कर सकते है, एक तो वो सर कटने के बाद भी लड़ते है और दूसरा उनकी पत्नी उन के साथ जिंदा जल के सती होती है”
“हजूर, राजपूतो उमराव की संख्या हम से दो ज्यादा इसलिए है क्योकि उनके दो ऐसे काम है जो हम नहीं कर सकते है, एक तो वो सर कटने के बाद भी लड़ते है और दूसरा उनकी पत्नी उन के साथ जिंदा जल के सती होती है”
शाहजहां यह जवाब सुनने
के बाद कुछ समय के लिए मौन रहा | अगले ही पल उसने कहा कि
ये दोनों नजारे वह अपनी आंखों से देखना चाहता है | इसके लिए उसने छह माह
का समय निर्धारित किया । साथ ही उसने यह भी आदेश दिया कि दोनों बातें छह माह के
भीतर साबित नहीं हुई तो मीरखां का कत्ल करवा दिया जाएगा और राजपूत उमरावो की
संख्या कम कर दी जाएगी। इस समय जोधपुर महाराजा गज सिंह भी दरबार में थे, उनको ये बात अखरी, उन्होंने मीरखां से इस
काम के लिए मदद करने का आश्वासन दिया |
मीरखां चार महीने तक
रजवाड़ों में घूमे, लेकिन
ऐसा वीर सामने नहीं आया जो बिना किसी युद्ध महज शाहजहां के सामने सिर कटने के बाद
भी लड़े और उसकी पत्नी सति हो। आखिरकार मीरखां जोधपुर महाराजा गजसिंह जी से आ कर
मिले । महाराजा ने तत्काल उमरावों की सभा बुलाई|
महाराजा ने जब शाहजहां
की बात बताई तो सभा में सन्नाटा छा गया । महाराजा की इस बात पर कोई आगे नहीं आया ।
इस पर महाराजा गजसिंह जी की आंखें लाल हो गई और भुजाएं फड़कजे लगी। उन्होंने गरजना
के साथ कहा कि आज मेरे वीरों में कायरता आ गई है। उन्होंने कहा कि आप में से कोई
तैयार नहीं है तो यह काम में स्वयं करूँगा। महाराजा इससे आगे कुछ बोलते कि उससे
पहले 18 साल का एक जवान उठकर खड़ा हुआ। उसने महाराजा को खम्माघणी करते हुए
कहा कि हुकुम मेरे रहते आपकी बारी कैसे आएगी|
तभी दरबार में एक सहयोगी बोल पड़े की हजुर ये तो अभी कुवारा है, इसकी अभी शादी नहीं हुई है तो इसके पीछे सती कौन होगा”
तभी दरबार में एक सहयोगी बोल पड़े की हजुर ये तो अभी कुवारा है, इसकी अभी शादी नहीं हुई है तो इसके पीछे सती कौन होगा”
तब उसी दरबार में बेठे
भाटी सरदार बोल उठे “में
दूंगा अपनी बेटी इसको”,
"करण काज कुल कीत, भटीयानिया होवे सती🚩
महाराजा ने अच्छा
मुहूर्त दिखवा करतोगोजी राठौर का विवाह करवाया । विवाह के बाद तोगाजी ने अपनी
पत्नी के डेरे में जाने से इनकार कर दिया | वे बोले कि उनसे तो
स्वर्ग में ही मिलाप करूँगा । उधर, मीरखां भी इस वीर जोड़े
की वीरता के दिवाने हो गये | उन्होंने तोगा राठौड़ का
वंश बढ़ाने की सोच कर शाहजहां से छह माह की मोहलत बढ़वाने का विचार किया।
🚩🚩जब यह बात नव दुल्हन को
पता चली तो उसने अपने पति तोगोजी राठौर को सूचना भिजवाई कि जिस उद्देश्य को लेकर
दोनों का विवाह हुआ है वह पूरा किये बिना वे ढंग से श्वास भी नहीं ले पाएंगे| इसी कारण शीघ्र ही
शाहजहाँ के सामने जाने की तैयारी की जाए|
महाराजा गजसिंह व मीरखां ने शाहजहाँ को सूचना भिजवा दी
महाराजा गजसिंह व मीरखां ने शाहजहाँ को सूचना भिजवा दी
समाचार मिलते ही
शाहजहां ने अपने दो जवानो को तोगोजी राठौड़ से लड़ने के लिए तेयार किया । शाहजहां
ने अपने दोनों जवानों को सिखाया कि तोगा व उसके साथियों को पहले दिन भोज दिया
जायेगा |
जब वे लोग भोजन करने
बैठेंगे उस वक्त तोगे का सिर काट देना ताकि वह खड़ा ही नहीं हो सके। उधर, तोगाजी राठौड़ आगरा
पहुंच गए। बादशाह ने उन्हें दावत का न्योता भिजवाया।
🚩🚩तोगाजी अपने साथियों के
साथ किले पहुँच गए। वहां उनका सम्मान किया गया। मान-मनुहारें हुई। बादशाह की
रणनीति के तहत एक जवान तोगाजी राठौड़ के ईद-गीर्द चक्कर लगाने लगा ।
उस वक्त तोगोजी को धोखा होने का संदेह हो गया। उन्होंने अपने पास बैठे एक राजपूत सरदार से कहा कि उन्हें कुछ गड़बड़ लग रही है इस कारण उनके आसपास घूम रहे व्यक्ति को आप संभाल लेना ओर उनका भी सिर काट देना।
उस वक्त तोगोजी को धोखा होने का संदेह हो गया। उन्होंने अपने पास बैठे एक राजपूत सरदार से कहा कि उन्हें कुछ गड़बड़ लग रही है इस कारण उनके आसपास घूम रहे व्यक्ति को आप संभाल लेना ओर उनका भी सिर काट देना।
🚩🚩इतने में दरीखाने से
चीखने-चिल्लाने की आवाजें आने लगी कि तोगाजी ने एक व्यक्ति को मार दिया ओर कुटिलता
और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के पीछे से उसका सर धड़ से अलग कर दिया।
तोगाजी बिना सिर तलवार लेकर मुस्लिम सेना पर टूट पड़े।
तोगाजी बिना सिर तलवार लेकर मुस्लिम सेना पर टूट पड़े।
बादशाह ने खुद के सबसे
मजबूत और कुशल योद्धा 20 घुड़सवारों को तोगाजी राठौर के समीप भेजा और देखते ही देखते उन 20 घुड़सवारों की लाशें
मैदान में बिछ गयी
दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ , मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी ,
बादशाह के 500 सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई ।।
ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा ” 500 मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने अब और मत कीजिये हजुर , इस काफीर को रोकीये
दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ , मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी ,
बादशाह के 500 सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई ।।
ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा ” 500 मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने अब और मत कीजिये हजुर , इस काफीर को रोकीये
तोगाजी के इस पराक्रम
पर ढोल-नणाड़े बजने लगे। चारणों ने वीर रस के दूहे शुरू किए। ढोली व ढाढ़ी सोरठिया
दूहा बोलने लगे। तोगोजी की तलवार रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। बादशाह के
दरीखाने में हाहाकार मच गया।
दरबार में खड़े राजपूत सिरदारों ने तोगोजी ओर भटियाणी जी की जयकारों से आसमाज गूंजा दिया
दरबार में खड़े राजपूत सिरदारों ने तोगोजी ओर भटियाणी जी की जयकारों से आसमाज गूंजा दिया
हजारो की संख्या में
मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था । शाहजहा तोगोजी का यह पराक्रम
देखकर अचंभित हो गया की अचानक तब ही तोगा लड़ते हुए दरी-खाने तक पहूच जाते है और
उन्हें लड़ते हुए अपनी और आता देख बादशाह घबरा जाता है और अपने रानीवास में जा कर
छिप जाता है,
🚩आखिर बादशाह अपने आदमी
को महाराजा गजसिंह के पास भेज कर माफ़ी मागता है की गलती हो गयी अब किसी तरह इन वीर
को शांत करो नहीं तो ये सब को मार देंगे, तब कही शाहजहा के कहने
पर गजसिंह ब्राह्मण दुआरा से तोगोजी के शरीर पर गुली का छिंटा फिंकवाया तब जाकर
तोगोजी की तलवार शांत हुई और धड़ नीचे गिरा।
🚩🚩महाराज गज सिंह दुआर
राजकीय सम्मान के साथ उनका शव को डेरे पहूचाया जाता है,
उधर, भटियाणी सोलह श्रृंगार कर तैयार बैठी थी। जमना जदी के किनारे चंदन कि चिता चुनवाई गई। तोगाजी का धड़ व सिर गोदी में लेकर भटियाणीजी राम का नाम लेते हुए चिता में प्रवेश कर गई
उधर, भटियाणी सोलह श्रृंगार कर तैयार बैठी थी। जमना जदी के किनारे चंदन कि चिता चुनवाई गई। तोगाजी का धड़ व सिर गोदी में लेकर भटियाणीजी राम का नाम लेते हुए चिता में प्रवेश कर गई
शत् शत् नमन वीर को और
सति विरांगना को🚩
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